Monday, February 26, 2024

महानता के ताज की आकांक्षा

महानता के ताज की आकांक्षा 


कभी कभी जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखाई नहीं देता। अनेक ढपोरशंखों के आगे लोग नतमस्तक होते रहते हैं और वास्तविक गुणवानों की पूछ परख पर ध्यान ही नही दिया जाता। वे नजर ही नहीं आते।
बिना योजना बनाए हर ऐरा गैरा लक्ष्य हासिल करने की तमन्ना मन में पाले रखता है। ऐसा कोई मन नहीं जिसमें देश दुनिया और समाज में नाम कमाने की कोई ख्वाहिश न रही हो। रथ पर सवार हुए बिना 'रथी' नहीं नहीं कहला सकता और फिर 'महारथी' को तो  महानता का कोई न कोई ताज सिर पर धारित करना ही होता है। बस लफड़ा यहीं से शुरू हो जाता है। ताज के चक्कर में महानता के अनेक उपक्रम चलाए जाने लगते हैं। सच्चे हकदार कछुए की तरह पीछे रह जाते हैं और तेज तर्रार खरगोश आगे निकल जाते हैं। अबकी बार खरगोश रास्ते में सोता नहीं है बल्कि देखने समझने वालों की आंखों पर चतुराई से झूठ व भ्रम का पर्दा तान देता है। 
सब जानते हैं कि महानता के लिए व्यक्ति की किसी भी विधा या विद्या में निपुणता या कुशलता जरूरी मानी गई है। कुशल निशानेबाज को केवल टारगेट दिखाई देता है। कुछ प्राकृतिक रूप से टारगेट होते हैं, कुछ को टारगेट किया जाता है। जैसे अर्जुन ने चिड़िया की आँख को टारगेट किया था।

अर्जुन अपने फन में उस्ताद था। लक्ष्य भेदन के वक्त अर्जुन का लक्ष्य केवल चिड़िया की आँख होती थी। कुशल निशानेबाज था, इसलिए महान भी था। मगर इन दिनों महानता के मर्म को जाने बिना हर कोई महान कहलाने को लालायित दिखाई देता है।

बिना महान कार्य किए 'महान' नहीं बना जा सकता। यही परम्परा रही है। इससे उलट अब व्यक्ति को पहले ही 'महामानव' घोषित कर दिया जाता है। फिर वह अपने कारनामें करने लगता है। जयकारों और प्रशस्तियों से आभासी प्रभामण्डल उसके आसपास जगमग करने लगता है। तदनुसार वह क्रमशः महान से महानतम बनता जाता है।

कुछ महात्वाकांक्षी लोग बिना विचारे इसी जुगाड़ में लगे रहते हैं कि किसी तरह वे ‘महामानव’ कहला सकें। परन्तु इस बात को नजर अंदाज कर जाते हैं कि जो महान हुए वे लक्ष्य साधने के लिए पहले उचित योजना बनाते रहे हैं और पूर्व तैयारी और अभ्यास भी करते रहते
 हैं।

राजनीति में भी ऐसा ही होता है। नेता विजेता बनने के लिए वोटर को टारगेट करता है। जब तक आप लक्ष्य नहीं भेद देते, तब तक महान नहीं बन सकते। महान बनने के लिए योद्धा भी बनना पड़ता है। ठीक ठाक निशानेबाज होना भी जरूरी है। वरना गोली चलती तो है मगर घायल कोई और हो जाता है। महानता की चाह में योंही कुछ लोग लक्ष्य की दिशा में चाक़ू सन्नाते रहते हैं।

अज्ञान और जल्दबाजी में कभी-कभी महानता की आकांक्षा का मरण हो जाता है। कभी वार खाली चला जाता है तो कभी सिर पर रखे तरबूज की बजाय आदमी की गरदन उतर जाती है। इसे ही बिना तैयारी के नदी में कूदना कहते हैं। नदी पार करने का लक्ष्य अधूरा रह जाता है तैराक का। समुद्र लांघ जाने का बड़ा लक्ष्य धरा का धरा रह जाता है। उथले जल में डूब जाने से एक महान तैराक के महान हो जाने की संभावना असमय काल कलवित हो जाती है।

इसलिए संत भी कह गए हैं, ‘हे राजन! पूरी तैयारी के साथ महायज्ञ में  ज्वाला को प्रज्वलित करें! हवन सामग्री की शुद्धता का भी ख़याल रखें। अशुद्ध सामग्री से धूम्र उत्पन्न होता है। यह धुंआ प्रासाद के गुम्बद में उपस्थित मधुमक्खियों को कदापि प्रिय नहीं होता। वे महानता के महोत्सव के आनन्द और उल्लास में बाधक होने को तत्पर हो उठती है।

बिना तैयारी कोई महान तो क्या साधारण लक्ष्य भी हासिल नहीं होता। सामान्य जन तक आवश्यक तैयारी रखते हैं। बिजली गुल होगी तो अन्धेरा घिर आएगा इसलिए रात को दियासलाई और मोमबत्ती साथ में रखकर सोते हैं। बारिश आने के पहले किसान अपने खेत जोत लेता है। बेशक उन्हें भी महानता की उतनी ही चाह होती है जितनी किसी सम्राट और योद्धा को।

महान तो वे भी हैं जिन्होंने दूरदृष्टि रख हमारे लिए कुएँ खोदे, तालाब बनाए। आज की तरह उनकी भी सोच रही होती तो शायद हमारे खेत प्यासे रह जाते, बस्ती में आग लगती तो हम शायद तुरंत उसे बुझा भी नहीं पाते।  विडम्बना यही है कि महानता की सूची में उनके नाम कहीं दिखाई नहीं देते।  ताज तो किसी और के माथे पर ही जगमगाना तय होता है। बदलते समय की अब यही रीत है। 

ब्रजेश कानूनगो 

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