Thursday, March 19, 2020

सहीराम 'हिन्दुस्तानी' का बयान

सहीराम 'हिन्दुस्तानी' का  बयान
ब्रजेश कानूनगो

आदरणीय दोस्तों ,
कुछ लोग बिलकुल सही कहते हैं कि सबसे सही समय वह होता है जब बिलकुल सही नतीजे आते हैं. हालांकि वे भी सही हैं जो कहते हैं कि यह सही वक्त नहीं है और नतीजे भी सही नहीं आ रहे हैं. तात्पर्य यह है कि अपने यहाँ ऐसा कुछ नहीं होता जो सही नहीं कहा जा सके. जिसे हम सही नहीं कह सकते वह भी कहीं न कहीं सही ही होता है.

अब यदि फ्लोर टेस्ट आदि में कोई सरकार गिर जाती है तो वह भी सही है,अल्पमत में उसका गिर जाना सही बात है. यदि वह बहुमत सिद्ध कर अपनी जगह जमी रहती है तो वो भी एक तरह से सही ही होगा क्योंकि जनता तो अपने प्रतिनिधियों को पूरे पांच वर्ष के लिए ही चुनकर भेजती है.

कोई समय इसलिए भी सही होता है कि सही पार्टी की सही सरकार बनती है. पहले जो सरकार रहती है वह भी सही ही होती है। लेकिन वह अपने समय पर सही पार्टी की होती है।  वर्तमान  सरकार चूंकि सही वक्त पर चुनकर आई है इसलिए एक सही सरकार है.

चूंकि सरकारें हमेशा सही होती हैं इसलिए उनकी नीतियाँ भी सही होती हैं , सरकारें हमेशा सही फैसला लेती हैं. निर्णय भी सही होते हैं.

विपक्ष भी सही होता है. सरकारों के निर्णयों का विरोध करके वह बिलकुल सही काम करता है.  सही तरह से यदि विपक्ष अपना दायित्व नहीं निबाहेगा तो सरकार को कैसे सही किया जा सकता है. सरकार को सही रखने के लिए विरोधियों को भी सही कार्य करते रहना पड़ता है. सही फैसलों का विरोध भी विपक्ष के नाते सही है और जो सही नहीं हो रहा है उसे सही किये जाने के लिए आवाज उठाना भी बिलकुल सही होता है.

कहते हैं कि पिछली सरकार के वक्त बहुत घोटाले हुए, भ्रष्टाचार हुआ. सही कहते हैं आप. सही हुआ कि यह सब पहले हो गया. जागरूकता आई और अब ध्यान रखा जा सकता है कि ऐसा दोबारा न हो. यह एक सही सावधानी है. कभी सार्वजनिक क्षेत्र और राष्ट्रीयकरण को सही माना गया अब जब निजी हाथों में विकास की कुदाली थमाई जाने की पहल दिखाई देती है. यह भी सही है. जब सरकारी मशीनरी सही नहीं रहे तो प्रायवेट सेक्टर को आगे बढ़ाना भी सही कदम है. नगर पालिकाएं सड़कें बनाती थीं, बत्तियां जलाती थीं बस्तियों में रात को. सफाई करवाती थी गटरों की,मोहल्लों की , सही करतीं थीं. अब ऐसे कामों में जनभागीदारी सुनिश्चित की जाती है. यह भी सही किया जाता है, इससे आम शहरी में सही नागरिक होने की भावना और दायित्व का प्रादुर्भाव होता है. सही सोच का विकास होता है. देश प्रदेश प्रगति की सही दिशा में आगे बढ़ता है.

वह भी सही था जब लोग आपस में मिला-जुला करते थे, सामाजिक रूप से एक दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होते थे. घर में शकर ख़त्म हो जाती तो पड़ोसी से मांग लेते थे, कोई बीमार पड़ता तो चचेरा भाई अस्पताल लिए जाता था. हर काम के लिए चलकर जाते तो काम के साथ व्यायाम भी हो जाता था. सब कुछ सही होता था. अब भी सही ही है कि सब कुछ ऑनलाइन हो जाता है. शकर की बात तो दूर कमबख्त पड़ोसी का मुंह तक नहीं देखना पड़ता. एक फोन करते ही दुनिया भर का किराना और सामान घर पर हाजिर. डिजिटल इंडिया की दिशा भी सही है. मोबाइल के नंबर दबाते ही सारी समस्याओं का समाधान संभव. न घर की न खेत की. न बीज की चिंता न दवाइयों की. सही है बिलकुल सही है विकास की यह राह भी.  सही नहीं भी होगी तो दुनिया कौनसी इतनी बड़ी है जो सही लक्ष्य तक पहुंचा न जा सके. मनुष्य के जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना सदियों से हमारा दर्शन रहा है. किसी ने कहा भी है- ‘जो हो रहा है वह सही हो रहा है और जो सही नहीं हो रहा समझो वह और ज्यादा सही हो रहा है.’

भले ही आप मुझे बेहद लचर या गोबर व्यक्ति कहें, सच तो यह है कि अब ‘गलत’ कहना बहुत कठिन और जोखिम भरा काम है. इसके बोलने से दुःख-संताप बढ़ता है, सुख और आनंद में कमी आती है. एक बैल हमारी ओर सींग लहराता आता दिखाई देने लगता है. जो बाद में एक भीड़ में बदल जाता है.  यही कारण है कि मैंने अब ‘गलत’ कहना छोड़ दिया है. एक बार फिर दोहराता हूँ- जो कुछ हो रहा है वह सब सही हो रहा है...गलत तो कुछ होता ही नहीं.

आपका दोस्त
सहीराम हिन्दुस्तानी  

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