Monday, December 12, 2016

मैथी की भाजी और भोजन का लोकतंत्र

मैथी की भाजी और गणतंत्र 
ब्रजेश कानूनगो

कड़वा मुझे बहुत पसंद है। करेला भी पसन्द है, लेकिन उसमें रस नहीं होता. होता भी हो तो मुझे पता नहीं. कड़वा गले से उतरता है तब सृजन थोड़ा सहज हो जाता है. ऐसा लोग कहते हैं. जिन्होंने बहुत सारे खंड काव्य लिखे, उनका तजुर्बा है. इधर रसधार गले से नीचे उतरी, उधर कविता का सोता ह्रदय में फूटकर कंठ से बाहर प्रवाहित होने लगता है.

इस मामले में मैं थोड़ा बिग ‘एच’ हूँ. ‘एच’ बोले तो ‘हरिवंश राय जी’ मधुशाला वाले. अरे वही अपने बच्चन जी, दो बूँद वालों के पिताजी. जिन्होंने बिना रसरंजन किये करोड़ों को मदहोश कर दिया था.. खैर जाने दीजिये..कहाँ मधुशाला और कहाँ....
  
बहरहाल, रसरंजन में मैं  मैथी की कड़वाहट से काम चलाता हूँ. ज्यादातर लोग मैथी की सूखी सब्जी बनाते है मगर मुझे पानीदार पसंद है। चेहरा हो, मन हो, गाँव हो, मोहल्ला हो, इज्जत हो  बिन पानी सब सून।

रसेदार के कई फायदे हैं। एक तो भाजी की कम मात्रा में ही काम चल जाता है। दूसरे ‘ड्रिंक्स’ के लिए अलग से मेहनत और खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती। स्नेक्स के लिए मूली के टुकड़े  उपलब्ध हो ही जाते हैं. सबसे महत्वपूर्ण यह कि गिरते हुए दांतों को ज्यादा पसीना नहीं बहाना पड़ता। पेट को मशक्कत कम करना पड़ती है। पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है। पंचारिष्ठ का खर्चा बच जाता है। यह धर्म संकट भी नहीं पैदा होता कि वह ‘झंडू’ जी का लूं या ‘बाबा’ जी का.   

मैथी की रसेदार सब्जी जब भी पत्नी बनाती है, उसके हाथ चूमने का दिल करता है। जैसा मैंने पहले कहा करेला भी अच्छा लगता है, लेकिन मैथी की बात कुछ और है।मैथी देशज लगती है।उसकी जड़ें जमीन से जुडी होती हैं।स्वदेशी जैसा फीलिंग आता है मैथी खाते हुए। करेले में 'मेक इन इंडिया' जैसा लुत्फ़ है। करेले की टेक्नोलॉजी पड़ोस से आयातित हुई है घर में। वहां हाथ-वाथ चूमना खतरनाक हो सकता है. पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते बनाये रखने की नीति के चलते मैथी अक्सर  प्राथमिकता में रहती है।

थोड़ी समस्या यह होती है मैथी की भाजी के साथ कि पत्तियां सोशल मीडिया के फॉलोवरों की तरह घनिष्टता से डाली के साथ जुड़ी रहती हैं। जिस डाली में अधिक फालोवर होते हैं वह उतनी बेहतर मानी जाती है।  हमारे लिए फॉलोवरों की संख्या हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। चाहे वह मैथी की भाजी हो या राजनीतिक पार्टी. फालोवर ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए. खैर. 

आमतौर पर मैथी की मुलायम डालियाँ कालान्तर में डंठल में बदल जाती है. सब्जी हो या सरकार, डंठलों की उपस्थिति जायका प्रभावित करती है. डंठलों से मुक्ति तरलता बनाए रखने के लिए जरूरी है.

डंठल के साथ  मैथी की जड़ें भीं खेत की मिट्टी सहित किचन तक चली आती है। यह मिट्टी मैथी के साथ फ्री नहीं मिलती, भाजी के भाव तुलकर आती है. ये माँ के लिए मूल्यवान है.  इस से माँ अपने बाल धो लेती है. जिससे शैम्पू का एक पाउच अगले माह के लिए सरप्लस हो जाता है. पिताजी के लिए यह बहुमूल्य, महान और पवित्र रज है. गाँव के सारे खेत बेचकर जब से शहर आये हैं तब से मैथी के साथ आने वाले मातृभूमि के इन रजत कणों को ही मस्तक पर लगाकर प्रातः सूर्य नमस्कार करते हैं. टाउनशिप की धरा ने तो अब सीमेंट का ख़ूबसूरत गाउन धारण कर लिया है.    

यदि मैं यकायक घोषित कर दूं कि आज घर में मैथी की सब्जी बनायी जाए तो वह निर्णय नोटबंदी की तरह सहज स्वीकार नहीं होता। इसके लिए रिजर्व बैंक की तरह तत्काल कदम नहीं उठाये जा सकते। निर्णय के बाद मैथी से कचरा साफ़ करना पड़ता है। पत्तियों को चुनना बहुत धैर्य का काम होता है। पत्ती पत्ती चुनना पड़ती हैं।
लहसुन की कलियां अनावृत करना पड़ती हैं। लोहे की कढ़ाई की सफाई करनी होती है।बहुत काम होते हैं. ऐसा थोड़ी कर सकते कि नए नोट तो छाप लिए मगर एटीएम तैयार ही नहीं हैं। पूर्व तैयारी करना बहुत आवश्यक है मैथी की भाजी बनाने के पहले।

मैथी आलोचना और विरोध की तरह कड़वी होती है। लोग कडुआ ज्यादा पसंद नहीं करते। कहते हैं संसार में इतनी कडुआहट पहले से है तो कड़वा और क्यों खाना। मीठा, चटपटा, खट्टा यहां तक की बे-स्वाद भी खा लेंगे मगर कड़वे का सोंचकर ही उबकाई लेने लगते हैं।

यह ठीक बात नहीं है। अटल जी भी ऐसा ही कहते थे. बहुत सी बातें अटल जी कहा करते थे. लेकिन यह कहने की परम्परा जारी है.  बीमारी के इलाज के लिए कड़वी दवाई पीना पड़ती है। गुणकारी तो कड़वा ही होता है। जो कड़वा है वह हितकारी है। कड़वा कड़वे को काटता है। भीतर का जहर मैथी से खत्म होता है। सब्जी का झोल और संत का बोल, दोनों एक सा असर करते हैं। कड़वे बोल मन-आत्मा को निर्मल करते हैं, मैथी की रसेदार सब्जी  तन और रक्त को  शुद्ध बनाती है।

कृपया कड़वी मैथी को सत्ता के विपक्ष की तरह मत देखिये,  इसका होना भोजन में लोकतंत्र बनाये रखने की जरूरत है। मैथी है तो लोकतंत्र भी है.

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रोड, इंदौर-452018 



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