Thursday, January 7, 2016

सवालों में संवाद

व्यंग्य 
सवालों में संवाद 
ब्रजेश कानूनगो 

जनसभाओं में भाषणों की समकालीन शैली और नेताओं की शानदार डायलाग डिलीवरी का मैं कायल हो गया हूँ. पहले शोलेफिल्म और उसके धाँसू संवादों का भी इसी तरह मुरीद हो चुका हूँ. कुछ चीजों का हमारे मन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ जाता है कि उन्हें भुला पाना बहुत कठिन होता है.
चालीस साल पहले धधके शोलेके संवादों की गर्मी आज भी वैसी ही बनी हुई है. तेरा क्या होगा कालिया?’ ‘कितने आदमी थे?’ ‘कब है होली? होली कब है?’ ‘तेरा नाम क्या है बसन्ती?’ भुलाए नहीं भूलते.
कहने को ये एक फिल्म के संवाद थे , असल में ये कुछ सवाल थे. इनके उत्तर में क्या कहा गया ज्यादा मायने नहीं रखता मगर सवाल अब तक हमारी जबान पर थिरकते रहते हैं.
आमतौर पर ज्यादातर सवाल बिलकुल साफ़ और स्पष्ट रहते  हैं लेकिन उनके जवाब विविधता के साथ आते हैं. परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों में भी केवल प्रश्न ही छपे होते हैं, हर ईमानदार परीक्षार्थी यदि व्यापम शैली के अपवाद को छोड़ दें तो भी अब तक उनके भिन्न-भिन्न उत्तर ही लिखता रहा है.
आइये ! इसे ज़रा यों समझने की कोशिश करते हैं, जैसे एक प्रश्न होता है - कैसा समय है?’
मैं कहूंगा- अच्छा समय है. साधुरामजी कहेंगे- कहाँ अच्छा समय है..अच्छा समय तो आने वाला है. कोई कहता है- दिन का समय है. वाट्सएप  पर कनाडा से बेटा बताता है –‘नहीं पापा रात है, मगर सूरज की रोशनी है अभी यहाँ . कहीं रात में उजाले का समय है, कहीं दिन में अन्धेरा घिर आया है. अजीब समय है ! लेकिन यह स्पष्ट है कि हर व्यक्ति का अपना विशिष्ठ उत्तर संभावित है.
सच तो यह है कि अमूमन प्रश्न जितने महत्वपूर्ण होते हैं, उतने उत्तर नहीं. विद्वानों का मत भी यही रहा है कि प्रगति और विकास के लिए सवाल होना बहुत जरूरी है. उत्तरों की विविधता के बीच से ही उन्नति की पगदंडी निकलती है. सवालों के उत्तर खोजता हुआ मनुष्य चाँद-सितारों तक पहुंच जाता है. ये सवाल ही हैं जो हमारे अस्तित्व को सार्थकता प्रदान करते हैं.
सही उत्तर वही जो प्रश्नकर्ता मन भाये ! ऐसे उत्तराकांक्षी सवाल करना भी एक कला है जो हर कोई नहीं कर सकता. इसके लिए गब्बर जैसा तन-मन , दमदार आवाज और स्टाइल भी होना चाहिए. सवाल पूछने की भी प्रभावी शैली होना चाहिए. जैसे भीड़ भरी सभा में अवाम से पूछा जाता है ..बिजली आती है कि नहीं? तो लोग एक सुर में उत्तर देते हैं नहीं.बिजली चाहिए कि नहीं?’ उत्तर आता है हाँ,चाहिए?’ ये होता है प्रश्न पूछने का प्रभावी तरीका. कोई ऐरा-गैरा क्या खा कर सवाल करेगा.
टीवी के ख़ास कार्यक्रम केबीसी की भारी लोकप्रियता के बावजूद मैं यहाँ बिग बी के सवालों की शैली से से ज़रा कम सहमत हूँ. यह भी क्या हुआ कि करोड़पति बनाने के लिए हॉट सीट पर बैठे प्रतियोगी से एक प्रश्न किया और उत्तरों के चार विकल्प दे दिए. यह तो कोई ठीक बात नहीं. होना तो यह चाहिए कि एक प्रश्न हो और एक ही उसका उत्तर हो. जैसे पूछा जाता है - इस बार सरकार बदलना है कि नहीं.?’ उत्तर एक ही आता है- हाँ, बदलना है.ये हुई न स्पष्टता. कोई विकल्प नहीं ,कोई भ्रम की स्थिति नहीं उत्तर देने में.

यह सच है कि शोलेफिल्म के संवादों की लोकप्रियता का लंबा इतिहास रहा है. मगर बदलाव के इस महत्वपूर्ण समय में अब पुराने रिकार्डों को ध्वस्त करने का वक्त आया है. बिहार में पिछले चुनावों के समय की एक जनसभा में गूंजे संवाद ने नया रिकार्ड बनाया है. कितना दूं...पचास हजार करोड़ ...साठ हजार करोड़ ...पूरे एक सौ पच्चीस करोड़.. !मुझे लगता है अब तक का यह सबसे शानदार सवाल-संवाद है. जिसने सभी डायलागों का रिकार्ड तोड़कर नया कीर्तिमान रचा है.  प्रत्युत्तर में गूंजी तालियों की गडगडाहट शोलेके संवादों और सिनेमाघर में उछाले गए सिक्कों की खनक की तरह वातावरण में बहुत समय तक गूंजती रहेगी.     

ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018



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