Monday, January 25, 2016

सब सही है

व्यंग्य
सब सही है
ब्रजेश कानूनगो  

कुछ लोग बिलकुल सही कहते हैं कि यही सबसे सही समय है. हालांकि वे भी सही हैं जो कहते हैं कि यह सही वक्त नहीं है सब कुछ सही कहने का. तात्पर्य यह है कि अपने यहाँ ऐसा कुछ नहीं होता जो सही नहीं कहा जा सके. जिसे हम सही नहीं कह सकते वह भी कहीं न कहीं सही ही होता है.

यह समय इसलिए भी सही है कि पहली बार कोई सही सरकार देश में आई है. पहले जो सरकार थी वह भी सही थी, लेकिन वह अपने समय पर सही थी. वर्तमान सरकार चूंकि सही वक्त पर चुनकर आई है इसलिए एक सही सरकार है. चूंकि सरकारें हमेशा सही होती हैं इसलिए उनकी नीतियाँ भी सही होती हैं , सरकारें हमेशा सही फैसला लेती हैं. निर्णय भी सही होते हैं.

विपक्ष भी सही होता है. सरकारों के निर्णयों का विरोध करके वह बिलकुल सही काम करता है.  सही तरह से यदि विपक्ष अपना दायित्व नहीं निबाहेगा तो सरकार को कैसे सही किया जा सकता है. सरकार को सही रखने के लिए विरोधियों को भी सही कार्य करते रहना पड़ता है. सही फैसलों का विरोध भी विपक्ष के नाते सही है और जो सही नहीं हो रहा है उसे सही किये जाने के लिए आवाज उठाना भी बिलकुल सही होता है.

कहते हैं कि पिछली सरकार के वक्त बहुत आर्थिक घोटाले हुए, भ्रष्टाचार हुआ. सही कहते हैं आप. सही हुआ कि यह सब पहले हो गया. जागरूकता आई और अब ध्यान रखा जा रहा है कि ऐसा दोबारा न हो. यह एक सही सावधानी है. कभी बैंकों और संस्थानों आदि के राष्ट्रीयकरण को सही माना गया अब निजी हाथों में विकास की कुदाली थमाई जाने की पहल दिखाई देती है. यह भी सही है. जब सरकारी मशीनरी सही नहीं रहे तो प्रायवेट सेक्टर को आगे बढ़ाना भी सही कदम है. नगर पालिकाएं सड़कें बनाती थीं, बत्तियां जलाती थीं बस्तियों में रात को. सफाई करवाती थी गटरों की,मोहल्लों की , सही करतीं थीं. अब ऐसे कामों में जनभागीदारी सुनिश्चित की जाती है. यह भी सही किया जाता है, इससे आम शहरी में सही नागरिक होने की भावना और दायित्व का प्रादुर्भाव होता है. सही सोच का विकास होता है. देश प्रगति की सही दिशा में आगे बढ़ता है.

वह भी सही था जब लोग आपस में मिला-जुला करते थे, सामाजिक रूप से एक दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होते थे. घर में शकर ख़त्म हो जाती तो पड़ोसी से मांग लेते थे, कोई बीमार पड़ता तो चचेरा भाई अस्पताल लिए जाता था. हर काम के लिए चलकर जाते तो काम के साथ व्यायाम भी हो जाता था. सब कुछ सही होता था. अब भी सही ही है कि सब कुछ ऑनलाइन हो जाता है. शकर की बात तो दूर कमबख्त पड़ोसी का मुंह तक नहीं देखना पड़ता. एक फोन करते ही दुनिया भर का किराना और सामान घर पर हाजिर. डिजिटल इंडिया की दिशा भी सही है. मोबाइल के नंबर दबाते ही सारी समस्याओं का समाधान संभव. न घर की न खेत की. न बीज की चिंता न दवाइयों की. सही है बिलकुल सही है विकास की यह राह भी.  सही नहीं भी होगी तो दुनिया कौनसी इतनी बड़ी है जो सही लक्ष्य तक पहुंचा न जा सके. मनुष्य के जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना सदियों से हमारा दर्शन रहा है. किसी ने कहा भी है- ‘जो हो रहा है वह सही हो रहा है और जो सही नहीं हो रहा समझो वह और ज्यादा सही हो रहा है.’

सच तो यह है कि अब ‘गलत’ कहना बहुत कठिन और जोखिम भरा काम है. इसके बोलने से दुःख-संताप बढ़ता है, सुख और आनंद में कमी आती है. एक बैल हमारी ओर सींग लहराता आता दिखाई देने लगता है. यही कारण है कि मैंने अब ‘गलत’ कहना छोड़ दिया है. बोलने में ही नहीं, यह शब्द अब मैं लिखता भी नहीं. एक बार फिर दोहराता हूँ- यह सही समय है और इस वक्त सब कुछ सही चल रहा है. इति. 

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