Thursday, March 23, 2017

सफलता का दो अक्षरी सिद्धांत

व्यंग्य
सफलता का दो अक्षरी सिद्धांत 
ब्रजेश कानूनगो

एक से भले दो, दो से भले तीन। इसी तरह बहुत पुरानी कहावत है ' तीन तिगाड़ी,बात बिगाड़ी'। निश्चित रूप से ये बातें बहुत अलग संदर्भों में कही गयी होंगी। हमारा संदर्भ थोड़ा अलग है।

हम शब्दों के उद्घोष और उनके प्रभावोत्पादन को लेकर गैर सांगीतिक , गैर व्याकरणीय और गैर वैज्ञानिक स्तर पर यहां चर्चा करना चाहते हैं। बौद्धिक और अकादमिक की बजाय मीडिया चैनलीय विश्लेषण को हम प्राथमिकता में रखेंगे।जिसमे एंकर को विषयगत विशेषज्ञता की ख़ास जरूरत नहीं होती। बस उसी तर्ज पर इस आलेख को आगे बढ़ाने का छोटा सा प्रयास है।तो मुलाहिजा फरमाइये।

मैंने महसूस किया है, बड़े शब्दों की बजाय सामान्यतः जन सामान्य के लिए दो अक्षरों वाले शब्द  ही सुविधाजनक रहते हैं। तीन या अधिक अक्षरों वाले शब्द  संबोधन में भी दो अक्षरों वाले शब्दों में बदल दिए जाते हैं।मसलन श्यामसुंदर 'शामूमें और दीनदयाल 'दीनू' में बदलते रहे हैं। जयकिशन 'जैकी' और मनोरमा 'मुन्नी' हो जाती है।

नारे वारों में भी जिस तरह  दो अक्षर वाले शब्द खिलते हैं  वैसे तीन चार अक्षरों वालों में उतना मजा नहीं आता। कुछ ख़ास सभाओं में जो भारी भीड़ उमड़ती रही  है,उसके पीछे भी वही दो अक्षरों वाले शब्दों की ख़ास  गूँज रही है।पूरे वायुमंडल में अदृश्य ध्वनि तरंगें इस तरह व्याप्त हो गईं कि उनके प्रभाव से बचा नहीं जा सकता।

आपने सुना ही होगा कि ध्वनियों को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता, बस उनका स्वरूप अवश्य बदल जाता है। अदृश्य ध्वनियों की उपस्थिति और  ये विकिरण प्राणी मात्र के मस्तिष्क को प्रभावित करता रहता है। घंटा ध्वनि और ओंकार नाद के संदर्भ में तो यह सर्व स्वीकृत है ही कि मानसिक,शारीरिक,पर्यावरणीय शुद्धता में इनकी बड़ी भूमिका होती है। 

दो अक्षरों वाले 'राम,राम' को उच्चारित करते हुए हमारे यहां अनपढ़ के भी  प्रकांड पंडित हो जाने के उदाहरण रहे हैं। 'राधे-राधे' कहते हुए संसार के कष्टों और दुखों से मुक्ति का रास्ता खुल जाता है।ये कुछ उदाहरण मात्र हैं,आप चाहें तो आगे व्यापक चिंतन के लिए ध्यान लगा सकते हैं।

मुझे लगता है देश में जो विपक्ष विनाशक हवा चली है इन दिनों, उसमें इस 'दो अक्षर सिद्धांत' का भी योगदान रहा होगा।
जो रिदम और प्रभावोत्पादकता  'मोदी-मोदी' या 'योगी-योगी' में है वह सोनिया,राहुल या केजरीवाल शब्दों में कहाँ! पीके जैसे लोगों को आगामी चुनावी योजनाएं बनाते समय इस सिद्धांत पर भी पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। विचार करने में हर्ज ही क्या है। 

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क, कनाड़िया रोड, इंदौर-452018

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