Tuesday, January 3, 2017

पथ भ्रष्ट जूता

व्यंग्य  
पथ भ्रष्ट जूता 
ब्रजेश कानूनगो 

टमाटर हो, अंडा हो या जूता हो,  अक्सर लक्ष्य से चूकते रहे हैं। चूक किससे नहीं होती। भगवान भी चूक जाता है। किसी जीव को  जिस पूर्व निर्धारित यौनि में जन्म देना होता है ज़रा सी चूक से उसे किसी और यौनि का नागरिक बना देता है। शेर के शरीर में गीदड़ की आत्मा और आदमी के सिर में लोमड़ी का दिमाग खुराफात करने से चूकता नहीं। लोग समझते हैं, आदमी चूक गया है,शेर गीदड़ हो गया है। प्रत्यक्ष तो यही दिखता है।

निशाना साधकर फैंका गया जूता नेताजी को बगैर क्षति पहुंचाए चुपचाप गुजर जाए तो बताइये इसमें चूक किसकी है? सोचने वाली बात है। जूते में खोट है या कि निशानेबाज से चूक हुई है।
यदि जूते में तनिक भी ईमानदारी हो तो कोई कैसे उसके प्रहार से बच सकता है। कहीं तो लोचा हुआ होगा। निशानेबाज की निपुणता पर भी संदेह होता है। जब गुरुकुल में निशानेबाजी सिखाई जा रही होगी तब उसका ध्यान जरूर कहीं ओर होगा. चिड़ियाँ की आँख की बजाय वह सुन्दर हिरणियों को निहारने में लगा होगा. 
यह भी हो सकता है कि वह किन्ही प्रतिद्वंदी ताकतों के हाथों बिक चुका हो। बाजार युग में सब कुछ खरीदा-बेचा जा सकता है। शरीर और आत्मा की बोली लग जाती है, फिर बेचारी चरण पादुका कौन मंत्रीजी की डिग्री है.

जूता प्रहार की प्रक्रिया को भी प्रायोजित किया जा सकता है। किसी अन्य बहुराष्ट्रीय ब्रांड की चालाकी या कूटनीति भी हो सकती है। जमे जमाये कारोबार पर आरोप लग सकता है कि अमुक कंपनी के जूते  की मारक क्षमता क्वालिटी कंट्रोल की कसौटी पर फेल है। इसलिए विश्वसनीय प्रकृति प्रदत्त और पूर्णतः वेज जूता अपनाएं, पूरी तरह स्वदेशी और गुणकारी। सिर पर लगे तो दिमाग की गर्मी भी निकाले और गंज पर अंकुरण भी सम्भव हो सके।

यह बहुत मानी हुई बात है कि जिस काम के लिए जिम्मेदारी सौंपी गयी हो उसे पूरी लगन और निष्ठा से करना चाहिए। यही आदर्श मूल्य हैं हमारे. यदि तंत्र को सौ रूपये आख़िरी आदमी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गयी हो और लक्ष्य तक सिर्फ पंद्रह पहुँच रहे तो संदेह होता है। इसका सीधा मतलब है कि तंत्र कही रास्ता भटक गया है। योजनाओं की आत्मा इसी तरह भटक जाती है। भटकाव की इसी अवधारणा को आगे चलकर भ्रष्टाचार जैसी अवधारणा से विद्वजन व्याख्यायित करते रहते हैं।

बहरहाल, कर्म को पूरे मन से सम्पन्न किया जाए और नेक इरादे से सम्पन्न किया जाए तो सफलता अवश्यम्भावी है। यदि मिसाइल को सचमुच सम्पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ दुश्मन की ओर दागा जाए तो लक्ष्य भेद अवश्य होगा । मिसाइल हो या जूता, ये सब भौतिक और ठोस     वस्तुएं हैं, इनमें पर्याप्त गतिबल होता है, ये जुमलों या उद्घोषों की तरह अदृश्य और हवा हवाई तरंगें नहीं होतीं। इनके टकराने के बाद टारगेट तरंगित होता है.
नेताजी की दिशा में सन्नाया गया जूता यदि बगैर लक्ष्य भेदन के गुजर जाता है तो इसमें कुछ न कुछ षडयंत्र जरूर संभावित है।

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड, इंदौर-452018


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