कतार में कवि
ब्रजेश कानूनगो
हे कवि! तू नाहक विलाप करता
है। देख जरा,
ये जो तेरे आगे और पीछे पंक्तिबद्ध खड़े हैं, जो धूप के कारण पसीना पसीना हुए जा रहे हैं, ये देश के सिपाही हैं जो देशहित में अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। इन
लोगों से कुछ सीख ले. हालांकि, ये यहां लाइन में नहीं लगते तो कहीं ओर लगना पड़ता। लाइन
में लगना इनकी नियति है। ये यहाँ नहीं कतार में होते तो कहीं ओर लगे अपना पसीना
बहा रहे होते. इनके पिता और पितामह, माता,भाई-बहन सब
लाइन में लगते रहे हैं।
बगैर लाइन में लगे इस कलयुग में कुछ भी कार्य
संभव नहीं है. लाइन में लगकर ही अराजकता से मुक्ति संभव है. लाइन बनाना अनुशासन की
दिशा में बढ़ने का पहला कदम होता है. राशन की दूकान से
लेकर अस्पताल की खिड़की तक, स्कूल प्रवेश की अप्लिकेशन से लेकर वोटर कार्ड और आधार
कार्ड तक, मतदान केन्द्रों से लेकर मुफ्त भंडारों तक कतार में लगना जरूरी है. हे
कवि! इस वृहद अनुशासन पर्व के दौरान इस महान कतार में खडा होकर यूं आँसू मत
बहा.
हे,सर्जक! इंतज़ार में
ही जीवन का सच्चा आनन्द मिलता है। जो सहज यों ही मिल जाए उसमें कौन बड़ी बात हुई।
तू स्वयं जानता है रचना जब तुरन्त छप जाती है और जो इन्तजार के बाद विशेषांक या पत्रिका में छपती है इन दोनों खुशियों में कितना बड़ा अंतर होता है।
इसलिए इस लाइन की महत्ता को समझ। जिसका नंबर कतार में जितने पीछे होता है वह उतना
अधिक भाग्यशाली है, उनके सुख और आनन्द की तीव्रता अन्यों के लिए
ईर्ष्या का विषय हो जाती है।
हे, कविवर! ये मत देख
की तेरे आगे और कितने लोग हैं, ये महसूस करके खुश हो कि तुझसे ज्यादा वे कितने
नसीब वाले हैं जिन्हें तेरे पीछे खड़े होने का अवसर मिला है। यह गौरव की बात है कि
तेरे यहाँ इतने सारे फालोवर हैं।
फालोवर होना न सिर्फ प्रतिष्ठा की बात होता है, बल्कि
यह बहुत कठिन कार्य भी होता है कि कोई हमारे पीछे पीछे चले। यह बड़ी सिद्धि का
कार्य है जो तुझे यों ही उपलब्ध हो गया है। आज जो कतार क्षेत्र के अलावा प्रसिद्धि
में सबसे आगे हैं, उनसे कभी जानना, अपने अनुयायी बनाने के लिए उन्होने कितने पापड बेले
हैं। कई तो मात्र संवाद ही बोलते रहे कि-'जहां हम खड़े हो जाते
हैं, लाइन वहीँ से शुरू हो जाती है।' तुम समझ सकते हो कि
लाइन में खड़े होने जैसे काल्पनिक संवाद के जरिये भी सुख का सागर कैसा हिलोरे
मार सकता है, जबकि तुम तो वास्तविक जीवन की कतार में सशरीर खड़े हो। तनिक धैर्य रखो।
छोटे मोटे कष्टों को नहीं सहोगे तो बड़ी आपदाओं से कैसे मुकाबला कर पाओगे।
देखो कवि! जो अभी-अभी द्वार से बाहर आया है विजय पताका लहराते हुए, उसके मुख मंडल पर कितना तेज छाया हुआ है! प्रफुल्लता की इस गुलाबी आभा को ज़रा महसूस करो। इस अद्भुत आनंददायी क्षण की लंबी प्रतीक्षा के बाद जब तुम भवन से बाहर आओगे, जीवन की सच्ची कविता के आनन्द से लबालब भर उठोगे।
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इंदौर-452018
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