Thursday, January 4, 2024

आंदोलन पर उतरी सब्जियां

आंदोलन पर उतरी सब्जियां 


बड़ा ही गजब हो गया. ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल समाप्त हुई ही थी कि नगर की मंडी में सब्जियों ने आंदोलन शुरू कर दिया. 
सारी की सारी सब्जियां अपनी विविध प्रकृति और गुण धर्म छोड़कर एकजुट हो गईं. चाहे गौर वर्णी धवल मूलियां हों या गुलाबी शकरकंद,चुकंदर. यूरोपियन शैली में बालों को खूबसूरती से संवारे गोभियां हों या घूंघट लिए शर्मीली मटरें, अपने ठिकानों को छोड़कर राजबाड़ा चौक पर सभी जमा हो गए. 

केवल सब्जियां ही नहीं कंदमूल और जमीकंद भी हाथों में बैनर,झंडे और पोस्टर थामे नारे लगा रहे थे. यहां तक कि लौकी और कद्दू जैसी दीनहीन और उपेक्षित तरकारियां भी एकजुट हो गईं. 
भले ही गाजरों को कुटिल विदेशी लोगों के प्रेम ने सिर पर चढ़ा रखा है लेकिन जब भारतीयता पर बात आ गई तो हजारों की संख्या में ये रेड कामरेड भी हाथों की श्रंखला बनाए अपना झंडा बैनर थामे शालीन प्रदर्शन कर रहे थे. 

कद्दू समाज की ओर से तो एक पुतला बनाकर भी चौराहे तक लाया जा चुका था. उनका विचार था की पुतला जलाए बिना किसी आंदोलन में चेतना नहीं आती. आग और आंदोलन का बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध रहा है. पुतला न हो तो टायर जलाकर भी प्रदर्शन में जान फूंकी जाती रही है. 

सबसे ज्यादा आंदोलनकारी बैंगन समाज से ही थे. वैसे बैंगनों में भी कई जातियां और उपजातियों का झमेला है फिर भी उनकी एकता देखते ही बनती थी. अपने आपको श्रेष्ठ और सत्ता तक को हिला देने वाले बलशाली टमाटर और प्याज भी आज बहुत बड़ी संख्या में नारे बाजी कर रहे थे. 

इस समूचे प्रदर्शन और आंदोलन को सब्जियों के सरताज आलुओं का भरपूर सहयोग और शक्ति प्राप्त थी. हो भी क्यों ना? किसी ऑन लाइन फूड पोर्टल टेस्ट एटलस ने दुनिया की सबसे खराब सब्जियों में 'आलू,बैगन और टमाटर'  वाली अपनी पसंदीदा सब्जी का नाम शामिल कर लिया था. यह किसी भी हालत में किसी भारतीय को कैसे स्वीकार होगा चाहे वे व्यक्ति हो या तरकारी.  इसीलिए राजबाड़ा चौक पर गहमागहमी के बीच सब्जियों का यह विरोध प्रदर्शन चल रहा था. 

प्रश्न भारतीय तरकारी समाज की सब्जियत का जो था. उसके मान सम्मान का था. दुनिया को श्रेष्ठ भोजन देने वाले हर दिल अजीज आलुओं की सर्वव्यापकता और स्वीकार का था. उपेक्षित बैंगनों को गले लगाने वाली उसकी स्नेहिल उदारता का था. टमाटरों ही नहीं दुनियाभर की सब्जियों में उसके घुलमिल जाने और मिलनसारिता जैसे मूल्यों की रक्षा का था. आंदोलन तो होना ही था. 

आलुओं के नेतृत्व में यह भी लग रहा था कि सब्जियों का यह प्रदर्शन राष्ट्रव्यापी होता हुआ कहीं ग्लोबल ही न हो जाए.  टमाटरों का तो यहां तक कहना था कि इस सबके पीछे किन्ही विदेशी और बाजार शक्तियों का हाथ है जो भारतीय सब्जियों के बाजार पर कब्जा करना चाहती हैं. 
प्याज समाज के लीडर का कहना था कि हमें अपनों द्वारा सड़कों पर रौंद डालने से उतना मानसिक कष्ट नहीं हुआ जितना ' बैंगन टमाटर आलू ' की सब्जी को संसार की घटिया सब्जियों  में वर्गीकृत करने से हुआ है. 

राजबाड़ा चौक में शोरगुल बढ़ता जा रहा था. ढोल नगाड़े भी बजने लगे थे. देखते ही देखते मनुष्यों की भीड़ वहां बढ़ने लगी. कुछ नेतागण और उनके अनुयायी भी गरदनों में रंग बिरंगे दुशाले और टोपियां लगाए इकट्ठा होने लगे. सब्जियों की प्रदर्शनकारी टुकड़ियां धीरे धीरे मानवीय कार्यकर्ताओं के पीछे सिमटने लगीं. कद्दूओं द्वारा लाया गया पुतला किसी टोपीधारी नेता ने सुलगा दिया था. आग भड़कने लगी थी. नारों के स्वर ऊंचे होते जा रहे थे. 
किसी हवलदार ने चौकी को खबर की तो थोड़ी ही देर में  पुलिस की गाड़ी वहां आई और जवान  डंडे बरसाने लगे. जलते हुए पुतले को भीड़ से दूर ले जाकर उस पर फायर ब्रिगेड के वाहन ने पानी की बौछार कर दी.

यकायक मुझे लगा जोशीले प्रदर्शन को देखते हुए मेरे चेहरे पर भी पानी के कुछ छीटें आ गिरे हैं. छींटे ही नहीं एक जानी पहचानी सी आवाज भी सुनाई दी, अब उठ भी जाइए, कब तक सोते रहेंगे, बाजार से बैंगन ले आइए, बच्चों की फरमाइश है, आलू बैंगन टमाटर की सब्जी बनानी है आज. 

ब्रजेश कानूनगो 



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