Wednesday, June 14, 2023

नींद हराम होने से निकला ज्ञान

 नींद हराम होने से निकला ज्ञान 


जिस दौर में खबरिया चैनलों पर समाचार वाचक 'कर्मचारी' को 'करमचारी' उच्चारित करते हों। 'संभावना' और 'आशंका' जैसे शब्द  समानार्थी समझे जाते हों, तब मेरे किसी भाषाई 'आलाप'  के कोई ख़ास मायने नहीं हैं। मेरी बात  को  किसी बेसुरे राग में घोषित हो जाने की पूरी आशंका है। इसे  बेवजह और असमय के  ‘प्रलाप’ का  आरोप भी झेलना पड़ सकता है। फिर भी  दुस्साहस की प्रबल इच्छा से मैं बेहाल हूँ।

दरअसल बात कुछ ऐसी है कि गत रात मेरी नींद हराम हो गई। हालांकि मैं शेयर बाजार का कोई ध्यानमग्न खिलाड़ी भी नहीं हूं कि उठते गिरते सेंसेक्स से मेरी धड़कने बड़ गई हों। न मैं किसी सरकार में किसी मंत्रालय का कोई गुमनाम मंत्री हूं जिसे आने वाले समय में पदच्युत होने का कोई खतरा हो। एक सामान्य सा पेंशनर व्यक्ति जो दिन भर लोकरंजन और राष्ट्रप्रेम से भरे संदेशों को पूरी निष्ठा से जनजागरण हेतु समूची मानव जाति के बीच विस्तारित करने का पवित्र काम करने में लगा रहता है, उसे ऐसी क्या चिंता हो सकती है जिससे उसकी नींद गड़बड़ा जाए।

बहरहाल कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम आंखें बंद किए बिस्तर पर पड़े रहते हैं लेकिन नींद नहीं आती। घड़ी की हर टिक पर हमें आशा रहती है कि शायद अगली टिक हम नहीं सुन पाएँ और नींद के रेशमी जाल में जकड़ लिए जाएं। लेकिन वह नहीं आती तो नहीं आती। 

नींद नहीं आने के अनेक कारण हो सकते हैं। मच्छर आपके शरीर पर आतंकवाद फैला रहे हों, गर्मी पड़ रही हो, हवा चलना बन्द हो। ये नींद नहीं आने के सामान्य कारण हैं। नींद हराम होना इससे थोड़ा अलग है। परोक्ष भावनात्मक कारणों से इंसान की नींद हराम होती रही है। मन में कोई डर बैठा हो कोई दुखद घटना से  कोई दुख साल रहा हो या किसी सुखद समाचार से मन अधिक प्रफुल्लित हो , मनचाही बात अकस्मात फलीफूत हो गई हो अथवा अनचाही पीड़ा ने तन मन को झकझोर दिया हो तब भी  प्यारी निंदिया रानी बाहें नहीं फैलाती।

किसी छोटे दुकानदार से पूछिए जिसका दिवाला निकल रहा हो,किसी युवा से पूछिए जिसने वर्षों मेहनत करने के बाद किसी परीक्षा में सफलता पाई हो लेकिन नौकरी नहीं मिल सकी हो, किसी आम निवेशक से पूछें जिसके शेयरों के भाव अचानक गिर गए हों ... रात भर करवटें बदलने के बहुत से कारण होते हैं। सभी पीड़ितों का जवाब एक ही होगा कि कोशिश करते हैं लेकिन रात को नींद नहीं आती। नींद की चोरी हो जाती है। यह भी सच है कि चोर उनके अंदर ही मौजूद होता है। 

मेरी व्यथा इन सबसे बिल्कुल अलग थी। जब बड़ी मुश्किल से  किसी तरह काल्पनिक भेड़ों की गिनती करते हुए आँख लगी ही थी कि मोहल्ले के कुत्तों ने सामूहिक स्वर में कोई 'श्वान गीत' छेड़ दिया। जब नींद उचट ही गयी और वाट्सएप के सारे जीव-जंतु स्वप्नदर्शी हो चुके तो मेरे लिए इसके अलावा कोई चारा नहीं रह गया कि मैं उस अद्भुत और सुरीले 'डॉग्स गान' के आनंद में डूब जाऊं।

क्या वह कोई विलाप था कुत्तों का?  विलाप था तो उन कुत्तों को आखिर क्या दुःख रहा होगा जो इस तरह समूह गान की शक्ल में यकायक वह फूट पड़ा था। यह दुःख कुत्तों को  सामान्यतः रात में ही क्यों सताता है? क्या दिन के उजाले में कुत्तों के अपने कोई  दुःख नहीं होते? अगर होते हैं तो वे उसे दिन में अभिव्यक्त क्यों नहीं करते। दिन में आखिर कुत्तों को किसका और कौनसा डर सताता है जो वे दुपहरी में अपना मुंह खोलकर विलाप नहीं करते?  

कुछ लोग दिन के कुम्भकर्ण होते हैं। दोपहर की नींद निठल्लों की नींद होती है। इन नींद प्रेमियों को देश प्रेमी बनाने के लिए जगाना जरूरी है, किन्तु यह कैसी हिमाकत है दुष्ट कुत्तों की जो वे थककर सोए मेरे जैसे कर्तव्यनिष्ठ और देश भक्त लोगों की नींद हराम कर देते हैं, रात के दो बजे।

थोड़ा सकारात्मक सोंचें तो यह भी संभव है कि ये कुत्ते अपनी विलुप्त हो रही किसी गायन परंपरा को जिन्दा रखने के महान उद्देश्य से रात को समवेत स्वर में 'आलाप' लेने का अभ्यास करते हों।  जो भी हो इनकी  निष्ठा असंदिग्ध है । पूरे मन से एक साथ, एक स्वर में इनकी तेजस्वी  प्रस्तुति न सिर्फ प्रशंसनीय बल्कि अनुकरणीय कही जा सकती है। अन्य प्राणी जगत में पुरानी परंपराओं को बचाने की यह प्रवत्ति दिखाई देना अब दुर्लभ है। मनुष्य समाज में तो अब हरेक का अपना अलग राग है, अपना अलग रोना है। हमें यह सामूहिकता कुत्तों से सीखनी चाहिए। क्या ख्याल है आपका !! 

ब्रजेश कानूनगो 

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