Saturday, November 13, 2021

उनकी शुभकामनाएं और मेरा आभार

उनकी शुभकामनाएं और मेरा आभार     


वे विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। कुछ लोगों में विनम्रता और सद्भाव जैसे गुण कूट कूट कर वैसे ही भरे होते हैं जैसे गजक में गुड़ समाया होता है। तिल्ली के साथ गुड़ की कुटाई से गजक जैसी लोकप्रिय और गुणकारी मिठाई बनती है। बचपन में मन और देह के साथ सद्गुणों की कुटाई करके गुरूजी भी अपने शिष्यों का गुणी व्यक्तित्व बनाने के प्रयास किया करते थे। हालांकि उस पिटाई से मन पर कम और देह पर चोट ज्यादा लगती थी, फिर भी उसका खासा असर सिर की तेल मालिश की तरह भीतर तक हो जाता था।

इस प्रक्रिया में विनम्रता और सद्भाव जैसे गुणों की चाशनी स्वभाव में उसी तरह सहज बनती चली जाती थी, जैसे मुंह में लार बनती है। यह तो सभी भली प्रकार जानते हैं कि हमारी लार शरीर की कई बीमारियों को हर लेने की असीमित क्षमता रखती है। आयुर्वेदाचार्य सुबह उठते ही बासी मुंह दो गिलास पानी लार सहित पी जाने का आज भी परामर्श देते हैं। इसी तरह विनम्रता और सद्भाव की चाशनी भी लार की तरह काम करती है, जीवन में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों से निपटने में इस दवाई का भी बड़ा योगदान होता है।

उन्होंने जीवन में इसी चाशनी युक्त दवाई को चाय की तरह अपना रखा है। जब भी जरूरत पड़ती है सामने वाले को पिला देते हैं। हर मौके पर वे खूब शुभकामनाएं व्यक्त करते हैं। 

जीवन को सुगम और सुखद बनाने के लिए एक दूसरे के प्रति भरपूर सद्भावनाएँ व्यक्त करना एक बढ़िया उपाय है। उनके लिए यह मात्र औपचारिक रस्म नहीं होती है। उनकी शुभकामनाएं सदैव हार्दिक होती हैं और हृदय से निकलकर आती हैं। कभी कभी तो यह अंतरतम की गहराइयों से बोरिंग के पानी की तरह फूटकर बहुत वेग से बाहर आती हैं। उनका एक 'हार्दिक' से काम नहीं चलता, व्याकरण और भाषाई अनुशासन का दिल पे क्या लगाम।  'हार्दिक' गुणित में निकलकर दो-दो बार उनके ह्रदय को निचोड़ देता है।  यह होता है विनम्रता, सद्भाव,संवेदनाओं और शुभेच्छाओं की अभिव्यक्ति का शानदार जलवा।

इस बार उनकी शुभकामनाएं पाकर मैं हतप्रभ रह गया। कार्ड पर हमेशा की तरह 'हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं ' नहीं लिखा था।  कार्ड पर लिखा था , 'आर्थिक आर्थिक  शुभकामनाएं!'
वे हिंदी के विद्वान हैं। उनके लिखे में वर्तनी का दोष हो ही नहीं सकता। अखबारों तक में वे प्रूफ की गलतियां देख क्रोध से उबल पड़ते हैं। संपादक को चिट्ठी लिखते हैं। मैंने एक बार पुनः कार्ड पर नजर दौड़ाई। वही लिखा था। 'आर्थिक आर्थिक शुभकामनाएं।' मुझे विश्वास है इसबार उनकी संवेदनाएं दिल से नहीं बल्कि दिमाग से निकलकर आई हैं। महंगाई के इस दौर में मुझे इसी की जरूरत थी। शुक्रिया मित्र। बहुत आभार!! ओह, क्षमा! बहुत बहुत आभार!!

ब्रजेश कानूनगो

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