Tuesday, May 25, 2021

लहरों पर सवार हंस

लहरों पर सवार हंस

लोकतंत्र के पर्यावरण में अनेक सामाजिक,आर्थिक, प्रशासनिक,राजनीतिक सरोवर हैं,नदियाँ हैं, समुद्र हैं,झीलें हैं, जिनमें तमाम जीव जंतु अठखेलियाँ करते रहते हैं। लेकिन हंसों की बात अलग है। जो हंस होते हैं उन्हें राज्य में उपलब्ध अकूत जल राशि बहुत मुग्ध करती है। उनकी सदैव यही कोशिश होती है कि इस विशाल राशि पर उनका आधिपत्य स्थापित हो। खासकर ऐसे लबालब जल स्रोतों में उठती लहरों की सवारी करने में इन हंसों का दिल तड़प तड़प जाता है। 

पुराने समय में सम्राटों के सरोवरों में 'राजहंस' हुआ करते थे। अब न राजशाही का जमाना है और न ही राज सरोवरों में हंस बतख आदि क्रीड़ा करते हैं। अब देश दुनिया में लोकशाही का बोलबाला है। लहरों पर सवार होकर अब कुछ लोग हंस बनकर लहरों की सवारी करने लगते हैं। एक दिन ऐसा भी आता है  जब वे राजहंस का दर्जा पा लेते हैं।

लहरों के ये आदम हंस जब लहर पर सवार हो जाते हैं तो उन्हें केवल लहर के उतार चढ़ाव से मतलब होता है। उनकी राह में पड़ने वाले वे फिर किसी भी जीव का दुख दर्द नहीं देख पाते। उनका मकसद केवल एक ही होता है कि वे सरोवर में उठी लहरों पर सवार होकर वे अथाह जलराशि में से अपनी आने वाली पुश्तों के सुख की 'राशि' जुटा लें।

'लहरजीवी' हंस अपनी तिजोरी भरता रहता है। फिर वह लहर महामारी की हो या राजनीति में किसी लोकप्रिय दल विशेष की। चतुर हंस लहर पर सवार होकर अपने पंख फैलाने लगता है। देश में सूखा पड़ा हो, बाढ़ आई हो, महामारी में लोग मर रहे हों, लहरों के आदम हंसों को अपनी तिजोरी भरने से फुरसत नहीं मिलती।
आदम हंसों की दूर दृष्टि बहुत तेज होती है। वे देख लेते हैं कि अब किस क्षेत्र की किस चीज में कोई लहर आने वाली है। ऐनवक्त पर अपने पँख फड़फड़ाकर उस लहर पर सवार हो जाते हैं। कभी राष्ट्रीयकरण की लहर में सुख भोगते हैं तो कभी जनभागीदारी और निजीकरण के खूबसूरत सरोवर की उद्दात्त लहरों पर जलक्रीड़ा करने को लालायित हो उठते हैं। कभी शिक्षा,कभी निर्माण, कभी परिवहन तो कभी जन स्वास्थ्य की नदियों में उठती गिरती लहरें इन्हें मोहित करने लगती हैं। बड़ा आकर्षक दृश्य होता है। लहरों पर सवार इन हंसों से प्रजातंत्र का सरोवर जीवंत है। 
सबका मन करता है कि कभी मौका मिले तो एक बार हम भी लहरों की ऐसी सवारी करके देखें।

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