Tuesday, October 6, 2020

श्री' का यूनिट पॉवर

'श्री' का यूनिट पॉवर

साधुरामजी को मैंने छेडते हुए कहा-‘श्रीमान जी, जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तो क्यों न उसके सम्मान सूचक विशेषण वापिस ले लिए जाना चाहिए?’ जैसे वह अपने नाम के आगे ‘डॉ’ लगाता हो या योगाचार्य, स्वामी, आचार्य जैसे किसी आदरणीय पदनाम को धारित करता हो, उसे तुरंत विलोपित कर दिया जाना चाहिए.’ 

‘यह भी कोई बात हुई भला! कल से मैंने कोई गलती कर दी तो तुम कहोगे मैं अपने नाम के आगे इकलौता  ‘श्री’ भी न लगाऊँ !’

‘हाँ, इसमें क्या बुराई है, जानते नहीं एक आतंकी को ‘श्री’ कह देने से देश में कितना बवाल हो गया था.’ मैंने कहा.

‘तो क्या हुआ, हम अपने संस्कार भूल जाँए? बुरे काम से घृणा करने की परम्परा रही है हमारे यहाँ, अपराधी भी एक मनुष्य होता है. सम्बोधन में उसके लिए भी ‘श्री’ का प्रयोग करना गलत नही कहा जा सकता।’

‘लेकिन जो व्यक्ति गलत काम करता है उसे ‘श्री’ कैसे कहा जा सकता है?’ मैने उनसे असहमत होते हुए पूछ लिया।

‘जो भी हो, अपराधी को उसके कर्म के लिए दंडित किया जा सकता है, एक हमनस्ल प्राणी के तौर पर हर मनुष्य को मर्यादित सम्बोधन ही किया जाना चाहिए। यही हमारी गौरवशाली परम्परा भी रही है. रावण और कंस सहित अनेक खलनायकों को सम्मान दिया जाता रहा है हमारे यहाँ.’

साधुरामजी अपने कथ्य पर अडिग थे, उनके तर्क में भी काफी दम दिखाई दे रहा था फिर भी मैने जिज्ञासा जाहिर करते हुए उनसे पूछा- ‘जब आप साधु और शैतान में कोई भेद नही करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि कौन सज्जन और चरित्रवान है और कौन धूर्त और पाखंडी या चालबाज? सब के सब ‘श्री’, फिर तो सब एक ही तराजू में एक ही वजन में तुलते रहेंगे? यह तो बडी ना-इंसाफी है हुजूर. यह न करें तो क्या करें,अब आप ही बताइये कुछ.’

साधुरामजी ने किसी दार्शनिक की तरह आसमान की ओर निहारा और पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह दाहिने हाथ की तर्जनी ठोडी पर टिकाते कहने लगे-‘तुम्हे याद होगा बडे-बडे संत महात्माओं के आगे 108 श्री, 1008 श्री लगाने की परम्परा हमारे यहाँ रही है। यही हमारी सभ्यता है। पांच हजार साल पुरानी हमारी सभ्यता को कैसे भुलाया जा सकता है। इसी तरह आधार नंबर की तर्ज पर  प्रत्येक व्यक्ति के आँकडों और सर्वे के अनुसार जनगणना के वक्त ही उसका व्यक्तिगत ‘श्री’  युनिट पॉवर निधारित कर दिया जाए। बाद में उसके नाम के साथ उतने ही 'श्री' का प्रयोग करना शायद अधिक तर्क संगत रहेगा।’ मैं साधुरामजी का चेहरा तकता रह गया।

ब्रजेश कानूनगो

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