Saturday, March 12, 2016

आमदनी वाला धन्धा

आमदनी वाला धन्धा
ब्रजेश कानूनगो 
बहुत दिनों से साधुरामजी नजर नहीं आ रहे थे. उनका हालचाल जानने जब मैं उनके घर पहुंचा, तो देखा कमरे में ढेरों किताबें, पत्रिकाएँ खुली-अधखुली पड़ी थीं. ऐसा लगा जैसे वे किसी रिसर्च की तैयारी कर रहे हों. वे पत्र-पत्रिकाओं में जगह-जगह कई शब्दों पर पेंसिल से रेखाएं खींच रहे थे. मैंने पूछा- ‘ये क्या हाल बना रखा है साधुरामजी?’

उन्होंने नजरें उठाई, फिर बोले-‘इन दिनों फुरसत में था और यह काम निकल आया, सो जुटा हुआ हूँ. वैसे भी हाथ कुछ तंग चल रहा है, पांच-छह सौ भी मिल गए तो कुछ तो राहत मिलेगी.’
‘भला ऐसा क्या काम निकल आया है जो मित्रों को ही भूल गए?’ मैंने उत्सुकता से पूछा.
‘अखबार नहीं पढ़ते क्या?’ उन्होंने टीवी बहस के किसी प्रवक्ता की तरह उत्तर की बजाए प्रति प्रश्न सामने धर दिया तो मैंने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा-‘मैं अखबार की एक-एक लाइन पढ़ता हूँ साधुरामजी. पांच राज्यों में चुनाव घोषित हो गए हैं, सरकार ने ईपीएफ पर प्रस्तावित टैक्स वापिस ले लिया है, कन्हैया की जुबान काटने वाले को ईनाम की घोषणा करने वाले को पुलिस ने मुस्तैदी से गिरफ्तार कर लिया है, माल्या के विरुद्ध सत्रह बैंकें सुप्रीम कोर्ट में चली गईं हैं, मैंने सब पढ़ा है.’
‘बवासीर के इलाज का विज्ञापन पढ़ा है ?’ वे छूटते ही बोले.
‘नहीं तो!’ मैंने आश्चर्य से कहा- ‘मैं विज्ञापनों वाला पृष्ठ नहीं पढ़ता.’
‘यही गलती करते हो! उसी पृष्ठ पर तो कभी-कभी ख़ास चीजें निकल आती हैं. पांच राज्यों में मई तक चुनाव हो जायेंगे इससे तुम्हे क्या?, ईपीएफ पर टैक्स की राहत से तुम्हे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं, पुलिस को अपना काम करना ही है कन्हैया हो या साधुराम हो, तुम क्या कर लोगे इसमें, माल्या हो या मांगीलाल कर्ज वसूली के लिए बैंकों को तो कार्यवाई करनी ही पड़ती  है, उनकी वसूली से तुम्हे क्या मिलना है?’ वे बोलते चले गए और मैं सुनता रहा. ‘अखबार पढ़ना और पढ़कर अपने मतलब की बात खोज लेना ही अखबार पढ़ना है, अब मुझे देखो, मैं अखबार पढ़ता हूँ तो उसमें से कुछ पा ही लेता हूँ.’
‘ज़रा स्पष्ट कीजिये, मेरी समझदानी का मुंह ज़रा सकरा है.’ मैंने अपनी नासमझी का ईमानदार परिचय दिया.
‘अखबार में विज्ञापन निकला है कि ‘प’ अक्षर से शुरू होने वाले नवजात बालक का नाम सुझाइए- पांच सौ रुपयों का नगद पुरूस्कार मिलेगा.’ उन्होंने जानकारी दी.
‘अच्छा! तभी आप इस तरह ‘प’ के पीछे पेन लेकर पड़े हैं. आजकल लोगों के पास इतना समय ही कहाँ है.उन्होंने अपना काम कर दिया है जितना समय वे बच्चे का नाम खोजने में जाया करते, उतने में उनका लाखों का नुक्सान हो जाता, अब पांच सौ रुपयों में यह सौदा भी बुरा नहीं है साधुरामजी!’ मैंने अपने क्रांतिकारी विचार रखे. इसी बीच चाय आ गयी. चुस्कियां लेते हुए साधुरामजी ‘समान्तर शब्द कोश’ में ‘प’ पृष्ठ पर पेंसिल घुमाने लगे.  
‘क्या आपको पूरी उम्मीद है कि आपका सुझाया नाम ही पसंद किया जाएगा?’ मैंने खामोशी भंग की.
‘यकीनन, हमें ऐसी प्रतियोगिताओं में सफल होने का खासा अनुभव है. यह टीवी देख रहे हैं आप, यह वनस्पति घी बनानेवाली कंपनी की प्रतियोगिता में जीता था, और यह जो पंखा लगा है छत पर, ये एक सिलाई मशीन के स्लोगन पर प्राप्त हुआ है. यह कुर्ता जो मैंने पहन रखा है वह एक  कपडा बनाने वाली कंपनी के सौजन्य से सिलवाया गया है. तुम जितना साल भर लेख आदि लिख कर नहीं कमा सकते, उतना मैं प्रतियोगिताओं में भाग ले कर हासिल कर लेता हूँ.’ उन्होंने स्पष्ट किया.
‘वैसे, इसमें आपको मेहनत तो खूब करनी पड़ती होगी?’ मैंने पूछा.
‘हाँ, करनी तो पड़ती ही है. तुम्हे याद है पिछले दिनों एक महिला ने अपना कुत्ता गम हो जाने का विज्ञापन छपवाया था और इनाम के हजार रूपये रखे था.’ वे बोले.
‘हाँ-हाँ, क्या मिल गया कुत्ता?’ उत्सुकता से मैंने पूछा.
‘मिलता कैसे नहीं! मैं जो लगा था उसके पीछे , वह धर्मराज का कुत्ता तो था नहीं जो हिमालय पहुँच जाता, यहीं महू के पास जानापाव की पहाडी पर ही मिल गया, पर मेहनत बहुत हो गयी भाई!’ उन्होंने बताया.
‘वास्तव में आपका कुत्ता खोजी अभियान काफी रोमांचक रहा होगा.’ मैंने उनकी हौसला अफजाई करते हुए कहा. वे मुस्कुरा दिए.
तभी मेरी नजर सामने पड़े अखबार की खबर के शीर्षक पर गई लिखा था-‘खुले में शौच करने वालों के फोटो भेजो और 300 रुपये इनाम पाओ.’ मैंने अखबार साधुरामजी की ओर बढ़ा दिया.

ब्रजेश कानूनगो

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