Thursday, September 20, 2018

घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के...


व्यंग्य
घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के...
ब्रजेश कानूनगो  

साधुरामजी कई बार न जाने किस बोझ से लदे हुए अक्सर एक कहावत बुदबुदाते रहते हैं ‘काम रत्ती भर का नहीं और फुर्सत घड़ी भर की नहीं’. व्यस्तता का यह सर्वोच्च शिखर है जब ज़रा-से काम के लिए बन्दा समय नहीं निकाल पा रहा.
कबीर कह गए हैं ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब. पल में परलय होएगा, बहुरि करेगा कब. तो साहेबान सन्देश यही है कि जो कुछ करना है इसी घड़ी कर लीजिये. पास बैठो घड़ी भर तबीयत बहल जायेगी...क्योंकि हरेक व्यक्ति का जीवन चाहे वह कोई शायर हो महात्मा हो या नायक पल दो पल का ही होता आया है.  इसीलिये नायक अपने चेहरे को हाथ के पंजे से छुपाता मार्मिकता से गा रहा है –‘जिन्दगी की न टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी’.

इस क्षण भंगुर जीवन के घड़े को भरते-भरते कई बार हम उस घड़ी को याद करते रह जाते हैं जब कोई ख़ास निर्णय लिया होता है. वह कौनसी घड़ी रही होगी जब किराए की शेरवानी पहन घुड़सवारी करते हुए किसी महाराणा की तरह जनकपुर की चौखट पर दस्तक दी होगी और गले में महकता फंदा मुस्कुराते हुए स्वीकार कर लिया होगा. हमारे इस योगदान से परिवार जटिल और बड़ा होता गया तथा दुनिया थोड़ी और घनी और समस्याग्रस्त हो गयी.  


समझदार लोग घड़ी के महत्त्व को भलीभांति जानते हैं. ‘घड़ी-घड़ी’ घड़ी बदलते रहना उनके स्वभाव में शामिल होता है. समय की चाल के हिसाब से वे कलाई पर घड़ी धारण करते हैं. उनकी घड़ी समय सूचक नहीं समृद्धि सूचक होती है. ऐसे लोग किसी भी घड़ी को जाया नहीं होने देते. उनका दिल लगातार धड़कता रहता है. मन में एक ही धुन गूंजती रहती है – ‘घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के...क्यूं धड़के ? आज मिलन की बेला में.’ जीवन की प्रत्येक घड़ी का सदुपयोग करते हुए अपने घड़े को भरते रहते हैं. जब घडा ऊपर तक भर जाता है, उसी घड़ी अभीष्ट से उनका मिलन हो जाता है. आत्मा परमात्मा में विलीन हो कर वायुयान में सवार हो जाती है और शरीर देश त्याग देता है.

बहुत सी सरकारी और गैर सरकारी घड़ियाँ ख़ास घड़ियों का रिकार्ड रखती हैं. अभी इस घड़ी कुल कितने बच्चे अपना घडा भरने इस पवित्र दुनिया में अवतरित हो रहे हैं? इंजीनियरिंग और प्रबंधन की पढाई किये कितने युवा पिज्जा डिलीवरी और कूरियर बॉय की सेवाएं देकर संतुष्ट हैं? कितने बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में रहकर अपने बच्चों का सहयोग कर रहे हैं? नेताओं की चुनावी रैलियों में कितने लोगों की भीड़ जुटा ली गयी है? घड़ी घड़ी के हर तरह के आंकड़ों का हिसाब-किताब उपलब्ध कराने की  ये प्रभावी घड़ियाँ उन्नत प्रोद्योगिकी और विज्ञान ने हमें उपहार स्वरूप प्रदान की हैं.          


मतदाता भी बहुत परिपक्व हो गया है अब. घड़ी-घड़ी की खबर रखता है. हमेशा उस घड़ी को सदैव याद रखता है जब वह ईवीएम का बटन दबाता है. उस घड़ी को भी वह नहीं भूलता जब प्रजातंत्र का घडा भ्रष्टाचार से ओवर-फ्लो होने लगता है और उस घड़ी को भी याद रखता है जब उसकी मोटर सायकिल का टैंक, बैंक खाता और पर्स खाली रहने लगते हैं.
यही वह घड़ी है जब नागरिक, सरकार और प्रशासन को थोड़ा रुककर सुन्दर समाज और लोकतंत्र के लिए घड़ी-दो घड़ी का समय निकालना चाहिए.

ब्रजेश कानूनगो


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