अग्रिम पंक्ति के नाम की ख्वाहिश
ब्रजेश कानूनगो
ब्रजेश कानूनगो
तुलसीराम की समस्या यह है कि अब्दुल नईम और
अमरजीत को ज्यादा देर कक्षा में रुकना नहीं पड़ता। जैसे ही माधुरी मेम उनका नाम
पुकारती है वे 'यस मेम' का उद्दघोष करते हुए कक्षा से तुरन्त प्रस्थान कर
जाते हैं और अपने शहर के 'कोटा कोचिंग संस्थान' की पिछली बैंचों पर जा बैठते हैं और तीन सौ छात्रों को माइक से गाइड
करते गड़बड़कर सर को सुनने लगते हैं।
तुलसीराम को वहां पहुँचने में बहुत देर हो जाती है क्योंकि कक्षा में अनिवार्य उपस्थिति के लिए अपना नाम पुकारे जाने तक उसे वहीँ इन्तजार करना होता है। क्योंकि अल्फ़ा बेटिकल रूप से 'टी' से शुरू होने के कारण उसका नाम हाजरी रजिस्टर में बहुत पीछे दर्ज है।
तुलसीराम को वहां पहुँचने में बहुत देर हो जाती है क्योंकि कक्षा में अनिवार्य उपस्थिति के लिए अपना नाम पुकारे जाने तक उसे वहीँ इन्तजार करना होता है। क्योंकि अल्फ़ा बेटिकल रूप से 'टी' से शुरू होने के कारण उसका नाम हाजरी रजिस्टर में बहुत पीछे दर्ज है।
यतीश समझदार था जिसने अपने उज्जवल भविष्य के मैनेजमेंट के लिए स्कूल छोड़कर प्रायवेट बोर्ड की परीक्षा देने का निर्णय ले लिया । उसका नाम भले जाकिर के पहले आता था लेकिन जाकिर का तो इलेक्ट्रॉनिक का अपना जमा जमाया कारोबार है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की कक्षा में उसका नाम कब पुकारा जाए। कभी कभी तो कक्षा में कदम धरते ही 'यस मेम' कहते हुए किसी भी बैंच पर जा बैठता, तब तक कक्षा में बैठक के लिए उसके सामने कई बैंचों के विकल्प रहते थे।
यही कारण है कि ज्यादातर पालक इन दिनों 'अ'
या अंग्रेजी के 'ए' से शुरू होने वाले नामों को प्राथमिकता देकर अपने बच्चों का नामकरण
करने की कोशिश करते हैं। उनकी चिंता बहुत वाजिब होती है।
ऐसा हर जगह हो सकता है। अब राज्यों के नामों को ही लीजिये, असम, अरुणाचल आदि के कितने बाद महाराष्ट्र और हमारे मध्यप्रदेश का नंबर आता है। और तमिलनाडु और वेस्ट बंगाल के तो और बुरे हाल हैं , वे तो बिलकुल 'यतीश' और 'जाकिर' की तरह ही हो गए हैं न! तमिलनाडु तो फिर 'जाकिर' की तरह संतोषी होने का माद्दा रख सकता है मगर पश्चिम बंगाल का हाल तो अक्सर बेचारे ' यतीश' जैसा ही हो जाता है।
ऐसा हर जगह हो सकता है। अब राज्यों के नामों को ही लीजिये, असम, अरुणाचल आदि के कितने बाद महाराष्ट्र और हमारे मध्यप्रदेश का नंबर आता है। और तमिलनाडु और वेस्ट बंगाल के तो और बुरे हाल हैं , वे तो बिलकुल 'यतीश' और 'जाकिर' की तरह ही हो गए हैं न! तमिलनाडु तो फिर 'जाकिर' की तरह संतोषी होने का माद्दा रख सकता है मगर पश्चिम बंगाल का हाल तो अक्सर बेचारे ' यतीश' जैसा ही हो जाता है।
अब खबर आई है कि पश्चिम बंगाल के पालकों का ध्यान इस ओर गया है। 'डब्ल्यू' से शुरू होने वाले पश्चिम बंगाल राज्य का नाम बदला जाएगा। सम्भवतः अब वह 'बी' से शुरू होगा और अन्य राज्यों की तुलना में उसका क्रम थोड़ा जल्दी आया करेगा। इस पहल का जरूर स्वागत किया जाना चाहिए।
नाम बदलने से शहरों की तकदीर बदलने की हमारी
कोशिशों के अच्छे
परिणाम देखने को मिलते रहे हैं। गुडगांव को गुरुग्राम और मद्रास को चेन्नई कहे जाने जैसे कुछ कुछ अपवाद
हो सकते हैं लेकिन एक दो घटनाओं से निराश होने की बात नहीं है। नाम बदलने का यह
क्रम जारी रहना चाहिए। मेरा सुझाव है अब मध्यप्रदेश को 'अग्रजप्रदेश' और छत्तीसगढ़ को 'बत्तीसगढ़' के रूप में नामान्तरित कर देना विवेकपूर्ण कदम होगा। इससे इन तथाकथित पिछड़े राज्यों को अग्रिम पंक्ति में शुमार होने का रास्ता आसान हो
सकेगा।सोचिये ज़रा !
ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रॉड,इंदौर 452018
503,गोयल रीजेंसी,चमेली पार्क,कनाड़िया रॉड,इंदौर 452018
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